“बात अठन्नी की” एक हिंदी लघुकथा है जो भ्रष्टाचार पर व्यंग करता है। यह लघुकथा भ्रष्टाचार को न मानने और दूसरों के प्रति दया दिखाने का संदेश देता है । इस कहानी में रसीला, मियाँ रमजान, इंजीनियर बाबू जगतसिंह, और जिला मजिस्ट्रेट शेख सलीमुद्दीन जैसे पात्र हैं।
“Baat Athanni Ki” (बात अठन्नी की) is a Hindi short story by Sudarshan. It is basically a satire on bribery. The story revolves around characters like Rasila, Miyan Ramzan, and Engineer, and it imparts a moral lesson about not accepting bribes and showing compassion to others.
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Main Characters
- Rasila: A domestic worker, working for Engineer Babu.
- Miyan Ramzan: Rasila’s friend, another worker.
- Engineer Babu Jagat Singh: Rasila’s employer, involved in corrupt practices.
- District Magistrate Shaikh Salimuddin: A neighbor of Engineer Babu, representing a position of authority, and is also involved in corrupt practices.
Summary (कहानी का वर्णन सविस्तार अपने शब्दों में)
कहानी में रसीला नाम का एक नौकर है जो इंजीनियर बाबू जगतसिंह के यहां काम करता है | रसीला को महीने में दस रुपए तनख्वाह मिलता हैं जो वह हर महीने गाँव भेज देता हैं जहा उसका परिवार रहता हैं। उसके परिवार में बूढ़े पिता, पत्नी, एक लड़की और दो लड़के हैं। उतने पैसे में रसीला के परिवार का गुजारा बहुत ही मुश्किल से हो रहा हैं इसलिए वह इंजीनियर बाबू से अपनी तनख्वाह बढ़ने की अनुरोध करता हैं । पर इंजीनियर बाबू नहीं मानते हैं और उससे कहते हैं कि उसे कहीं और ज्यादा वेतन का काम मिलता है तो वह जा सकता है | रसीला सोचता हैं कि उसे दुसरे जगह पर शायद ज्यादा तनख्वाह मिल भी जाए पर उसे शायद सम्मान नहीं मिलेगी जो उसे इंगिनीर बाबू के यहाँ मिलती हैं क्युकी यहाँ उसपर कोई संदेह नहीं करता। इसलिए वह इंजीनियर बाबू के यहाँ ही रुक जाता हैं।
इंजीनियर बाबू जगत सिंघ के पड़ोस में जिला मजिस्ट्रेट शैख़ सलीमुद्दीन रहते है जिनके यहां रमजान नमक चौकीदार काम करता है | रमजान और रसीला अच्छे दोस्त है और वेह आपस में काफी समय बिताते हैं। वेह मिलकर फल और मिठाइयां खाते थे जो उनके मालिकों को बेहद पसंद था |
एक दिन रसीला बहुत उदास होता है। रमजान उससे वजह पूछता है | रसीला बहुत संकोच करने के बाद बताता है कि उसके बच्चे बीमार है और इलाज के लिए पैसे नहीं है | रमजान उसे मालिक से पेशगी के लिए कहता है पर रसीला कहता है की मालिक देने से इंकार कर रहे हैं | यह सुनकर रमजान अपनी कोठरी में जाता है और बाहर आकर रसीला को कुछ पैसे देता हैं। रसीला सोचता है कि उसके मलिक ने उसकी, इतने साल काम करने के बावजूद, कोई मदद नहीं की और रमजान ने गरीब होने के बावजूद उसकी मदद की | रसीला रमजान को देवता के सामान समझता है |
रसीला के बच्चे स्वस्थ हो जाते हैं और रसीला रमजान का कर्ज भी उतार देता है। केवल आठ आने रह जाते हैं जो रसीला उतार नहीं पाता, जिसकी उसे हमेशा शर्म आती है, हालांकि रमजान उससे वह पैसे कभी नहीं मांगता।
एक दिन की बात है, इंजीनियर बाबू अपने कमरे में किसी से कुछ बात कर रहे होते हैं | रसीला उनकी बातें सुन लेता है और समझ जाते है कि इंजीनियर बाबू पाँच सौ रुपए की रिश्वत माँग रहे हैं | रसीला सोचता है रिश्वत लेना पैसा कमाने का कितना आसान तरीका है क्योंकि उसे तो पूरे महीने कठिन परिश्रम करने के बाद ही दस रुपए मिलते हैं |
रसीला यह बात रमजान को कहता है | रमजान कहता है कि रिश्वत लेने के मामले में उसके मालिक शेख साहब तो इंजीनियर बाबू के भी गुरु है और वह हजार रुपए से कम रिश्वत नहीं लेते | रमजान कहता है कि येह लोग इसी तरह से काम करके बड़ी कोठियां में रहते हैं और एक हम लोग हैं जो इतनी मेहनत करने के बाद भी हाथ में कुछ नहीं आता | रसीला कहता है उसके हाथों में इंजीनियर साहब ने काफी बार पैसे थमाए कुछ ना कुछ काम के लिए पर उसने कभी भी पैसे की चोरी नहीं की और अपना धर्म कभी भी नहीं बिगाड़ा।
इतने में इंजीनियर बाबू रसीला को बुलाते हैं और पाँच रुपए की मिठाई लाने को कहते हैं | रसीला पाँच रुपए के बदले साढ़े चार रुपये की मिठाई खरीदता है और बचे आठआने जाकर रमजान को देता है और उसका पूरा उधार चुका देता है।
इंजीनियर साहब जब मिठाई देखते हैं तो उन्हें शक हो जाता है कि वह पाँच रुपए की नहीं है | इंजीनियर साहब के पूछने पर रसीला घबराते हुए कहता है कि वह मिठाई पाँच रुपये की ही है | इंजीनियर साहब समझ जाते है की रसीला झूठ कह रहा है | वह उसे एक तमाचा मारते है और हलवाई के पास लेकर जाने की धमकी देते है | यह सुनकर रसीला अपना झूठ कबूल कर लेता है और इंजीनियर साहब से माफी मांगता है |
पर इंजीनियर साहब रसीला को पुलिस थाने लेकर जाते है और सिपाही को पाँच रुपए देकर उनसे रसीला को अपना जुर्म कबूल करवाने के लिए कहते है | आठ आने चुराने के जुर्म के लिए रसीला पर केस हो जाता है।
अगले दिन मुकदमा शेख सलीमुद्दीन के कचहरी में पेश हुआ | कचहरी में रसीला अपना जुर्म कबूल कर लेता है और कोई सफाई नहीं देता | अगर वह चाहता तो कह सकता था कि यह सब एक साजिश है पर वह ऐसा नहीं करता क्योंकि उसकी आंखें खुल जाती हैं और वह एक और गुनाह नहीं करना चाहता था | रसीला कचहरी कहता है कि यह उसका पहला अपराध है और माफी के लिए अनुरोध करता है |
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शेख सलीमुद्दीन इंजीनियर जगतसिंह के पड़ोसी और अच्छे दोस्त भी हैं | शेख साहब अठन्नी चुराने के लिए रसीला को 6 महीने की सजा सुनाते हैं | यह फैसला सुनकर रमजान को बहुत गुस्सा आता है | उसे लगता है कि यह दुनिया न्याय नगरी नहीं है बल्कि अंधेर नगरी है | एक गरीब आदमी को अठन्नी चोरी करने की इतनी बड़ी सजा और बड़े लोग काफी पैसा रिश्वत लेने के बाद भी उनकी चोरी कभी नहीं पकड़ी जाती |
रमज़ान वापस घर आता हैं। एक दासी को जब फैसले के बारे में पता चलता है तो वह कहती हैं की रसीला के साथ ठीक हुआ और वह इसी लायक हैं। यह सुनकर रमज़ान कहते हैं की यह इंसाफ नहीं अंधेर है क्योकि सिर्फ एक अठन्नी की ही तो बात थी। हजार, पाँच सौ के चोरों की चोरी पकड़ी नहीं जाती और अठन्नी के चौर जेल में पछताते हैं।
Hindi Projects / Questions on this Story
Baat Athanni Ki: Story by Sudarshan
1) कहानी का वर्णन सविस्तार अपने शब्दों में कीजिए
2) पाठ से सम्बन्धित पत्रों का परिचय और चारित्रिक विशेषताएं लिखिए:a) रमज़ान, b) रसीला, c) इंजीनियर बाबू जगत सिंह, d) ज़िला मजिस्ट्रेट शैख़ सलीमुद्दीन
3) प्रस्तुत पाठ में ऐसा क्यों कहा गया हैं कि – “यह दुनिया न्याय नगरी नहीं , अंधेर नगरी हैं,” पाठ का उदाहरण देते हुए कारण स्पष्ट कीजिये।
4)पाठ का उद्देश स्पष्ट करते हुए लिखिए कि लेखक ने इस कहानी के माध्यम से समाज कि किन दो मुख्या समस्याओं के बारे में बताने कि कोशिश की हैं। इन समस्याओं के कारण समाज पर क्या बुरा प्रभाव पढता हैं, लिखिए तथा इन्हे दूर करने के कुछ कारगर उपाय सुझाइये |
Baat Athanni Ki by Sudarshan: Complete Story
रसीला इंजीनियर बाबू जगतसिंह के यहाँ नौकर था। दस रुपए वेतन था। गाँव में उसके बूढ़े पिता, पत्नी, एक लड़की और दो लड़के थे। इन सबका भार उसी कंधों पर था। वह सारी तनख्वाय घर भेज देता, पर घरवालों का गुजारा न चल पाता। उसने इंजीनियर साहब से वेतन बढ़ाने की बार-बार प्रार्थना की पर वह हर बार यही कहते “अगर तुम्हें कोई ज्यादा दे तो अवश्य चले जाओ। मैं तनख्वाह नहीं बढ़ाऊँगा।”
वह सोचता, “यहाँ इतने सालों से हूँ। अमीर लोग नौकरों पर विश्वास नहीं करते पर मुझपर यहाँ कभी किसी ने संदेह नहीं किया। यहाँ से जाऊँ तो शायद कोई ग्यारह-बारह दे दे, पर ऐसा आदर न मिलेगा|”
जिला मजिस्ट्रेट शेख सलीमुद्दीन इंजीनियर बाबू के पड़ोस में रहते थे। उनके चौकीदार मियाँ रमजान और रसीला में बहुत मैत्री थी। दोनों घंटों साध बैठते, बातें करते । शेख सहाब फलों के शौकीन थे, रमजान रसीला को फल देता। इंजीनियर साहब को मिठाई का शौक था, रसीला रमजान को मिठाई देता।
एक दिन रमजान ने रसीला को उदास देखकर कारण पूछा। पहले तो रसीला छिपाता रहा। फिर रमजान ने कहा, “कोई बात नहीं है, तो खाओ सौगंध।”
रसीला ने रमजान का हठ देखा तो आँखें भर आई। बोला, “घर से खत आया है,बच्चे बीमार हैं और रुपया नहीं है।”
“तो मालिक से पेशगी’ माँग लो।”
“कहते हैं, एक पैसा भी न दूँगा।”
रमजान ने ठंडी साँस भरी। उसने रसीला को ठहरने का संकेत किया और आप कोठरी में चला गया। थोड़ी देर बाद उसने कुछ रुपए रसीला की हथेली पर रख दिए । रसीला के मुँह से एक शब्द भी न निकला। सोचने लगा. “बाबू साहब की मैने इतनी सेवा की, पर दुख में उन्होंने साथ न दिया। रमजान को देखो गरीब है, परंतु आदमी नहीं, देवता है। ईश्वर उसका भला करे।”
रसीला के बच्चे स्वस्थ हो गए। उसने रमजान का ऋण चुका दिया। केवल आट आने बाकी रह गए। रमजान ने कभी भी पैसे न मांग फिर भो रसीला उसके आगे आँख न उठा पाता।
एक दिन की बात है। बाबू जगतसिंह किसी से कमरे में बात कर रहे थे। रसीला ने सुना, इंजीनियर बाबू कह रहे हैं, “बस पाँच सौ! इतनी-सी रकम देकर, आप मेरा अपमान कर रहे हैं। ‘हुजूर मान जाइए। आप समझें आपने मेरा काम मुफ्त किया है।”
रसीला समझ गया कि भीतर रिश्वत ली जा रही है। सोचने लगा, “रुपया कमाने का यह कितना आसान तरीका है। मैं सारा दिन मजदूरी करता हूँ तब महीने भर बाद दस रुपए हाथ आते हैं। वह बाहर आया और रमजान को सारी बात सुना दी। रमजान बोला, “बस इतनी-सौ बात हमारे शेख साहब तो उनके भी गुरु है। आज भी एक शिकार फॅसा है । हजार से कम तय न होगा। भैया, गुनाह का फल मिलेगा या नहीं, यह तो भगवान जाने, पर ऐसी ही कमाई से कोठियों में रहते हैं, और एक हम हैं कि परिश्रम करने पर भी हाथ में कुछ नहीं रहता।
रसीला सोचता रहा। मेरे हाथ से सैंकड़ों रुपए निकल गए पर धर्म न बिगड़ा। एक-एक आना भी उड़ाता तो काफी रकम जुड़ जाती । इतने में इंजीनियर साहब ने उसे आवाज लगाई, “रसौली, दौड़कर पांच रुपए की मिठाई ले आ।”
रसौली ने साढ़े चार रुपए की मिठाई खरीदी और रमजान को अठन्नी लौटाकर समझा कि कर्ज उतर गया।
बाबू जगतसिंह ने मिठाई देखी तो चौंक उठे, “यह मिठाई पाँच रुपए की है।” “हुजूर पाँच की ही है।”
रसीला का रंग उड़ गया। बाबू जगतसिंह समझ गए। उन्होंने रसीला से फिर पूछा, रसीला ने फिर वही दोहराया। उन्होंने रसीला के मुँह पर एक तमाचा मारा और कहा,”चल मेरे साथ जहाँ से लाया है।”
“हुजूर, झूठ कहूँ तो…..” रसौली ने अभी अपनी बात पूरी भी न को थी कि इंजीनियर बाबू चिल्लाए “अभी सच और झूठ का पता चल जाएगा। अब सारी बात हलवाई के सामने ही कहना।”
अब कोई रास्ता न बचा था। कशा बोला, “माई बाप, गलती हो गई। इस बार माफ कर दें।”
इंजीनियर साहब की आँखों से आग बरसने लगा। उन्होंने निर्दयता से रसीला को खूब पीटा फिर घसीटते हुए पुलिस थाने ले गए। सिपाही के हाथ में पाँच का नोट रखते हुए बोले, “मनवा लेना। लातों के भूत बातों से नहीं मानते।”
दूसरे दिन मुकदमा शेख सलीमुद्दीन की कचहरी में पेश हुआ। रसीला ने तुरंत अपना अपराध स्वीकार कर लिया। उसने कोई कहानी न बनाया। चाहता ती कह सकता कि यह साजिश है। मैं नौकरी नहीं करना चाहता इसीलिए हलवाई से मिलकर मुझे फंसा रहे हैं, पर एक और अपराध करने का साहस वह न जुटा पाया। उसकी आँखें खुल गई थी। हाथ जोड़कर बोला, “हुजूर, मेरा पहला अपराध है। इस बार माफ़ कर दीजिए। फिर गलती न होगी।”
शेख साहब न्यायप्रिय आदमी थे। उन्होंने रसीला को छह महीने को सजा सुना दी और रूमाल के मुँह पौछा। यह वही रुमाल था जिसमें एक दिन पहले किसी ने हजार रुपए बाँधकर दिए थे।
फैसला सुनकर रमजान की आँखों में खून उतर आया। सोचने लगा “यह दुनिया न्याय नगरी नहीं, अंधेर नगरी है। चोरी पकड़ी गई तो अपराध हो गया। असली अपराधी बड़ी-बड़ी कोठियों में बैठकर दोनों हाथों से धन बटोर रहे हैं। उन्हें कोई नहीं पकड़ता।”
रमजान घर पहुंचा। एक दासी ने पूछा, “रसीला का क्या हुआ ?”
‘छह महीने की कैद।”
‘अच्छा हुआ। वह इसी लायक था।”
रमजान ने गुस्से से कहा, “यह इंसाफ नहीं अंधेर है ।सिर्फ एक अठन्नी की ही तो बात थी।
रात के समय जब हजार, पाँच सौ के चोर नरम गद्दों पर मीठी नींद से रहे थे, अठन्नी का चौर जेल की तंग, अंधेरी कोठरी में पछता रहा था।
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